सरस्वती मंत्र को विद्या मंत्र के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि इसके नियमित पाठ से शिक्षा और ज्ञान प्राप्त करने के मार्ग में आनेवाली सभी बाधाएं दूर होती है।
सरस्वती मंत्र ज्ञान के प्रकाश से मन को प्रकाशित करता है, यह ज्ञान चाहे शैक्षिक क्षेत्र से संबंधित हो या आध्यात्मिक जगत से। यह माना जाता है की सरस्वती मंत्र से चित्त में आत्मविश्वास की वृद्धि होती है और यह व्यक्ति को प्रबल अभिव्यक्तिशील बनाता है। सरस्वती मंत्र हमारे वाक शक्ति के विकास में भी सहायता करता है, वाणी दोष का निराकरण करता है और हमारे शब्दों का उचित उपयोग करने में हमारी सहायता करता है ।
स्फटिक माला , रुद्राक्ष माला
स्वेत पुष्प, स्वेत वस्त्र, स्वेत आसन
रोहिणी, मृगशिरा, चन्द्रावली
१,२५००० बार
माता सरस्वती सरस्वती मंत्र की देवी हैं। सरस्वती देवी वाणी, कला, संगीत, ज्ञान और मन की शक्ति की देवी हैं। सरस्वती देवी को 'वाक् देवी ' यानी वाणी और ध्वनि की देवी भी कहा जाता है। सरस्वती देवी ने मानव जाती के लिए भाषा विज्ञानं प्रकट किया। देवी सरस्वती को श्वेत वस्त्र पहनें एक सुन्दर स्त्री के रूप में दर्शाया गया है जो पवित्रता का प्रतिक है; श्वेत हंस पर विराजमान हैं जो ज्ञान और सत्य का दर्शाता है; उनके चार हाथ है जिसमे उन्होनें वीणा, पुस्तक स्फटिक माला और पवित्र जल पात्र धारण की हैं, जो क्रमशः रचनात्मकता और कला के सभी रूप , वेद (ज्ञान का मूल स्रोत), ध्यान की शक्ति और शुद्ध शक्तियों का प्रतिक है।
सरस्वती मंत्र के नियमित जप से वाक् , स्मरण-शक्ति और अध्ययन में एकाग्रता की वृद्धि होती है। सरस्वती मंत्र में अज्ञानता और भ्रम दूर करने की शक्ति है और मंत्र जप करने वाले की बुद्धि प्रखर होती है। सरस्वती मंत्र के जप से सीखना आसान और स्मृति लंबे समय तक रहता है । समर्पित भाव से इस मंत्र का जप करने से एक छात्र बहुत अच्छे अंकों से अपनी परीक्षा और एक नौकरी आकांक्षी अपने साक्षात्कार को सफलतापूर्वक उत्तीर्ण कर सकते हैं। यहां तक कि उच्च अध्ययन और शोध कार्य के लिए जाने को आकांक्षी सरस्वती मंत्र के नियमित जप से काफी लाभ उठा सकते हैं । कलाकार, कवि, लेखक और लोक वक्ता सरस्वती मंत्र की सहायता से उपलब्धियों की नई ऊँचाइयों तक पहुंच सकते हैं ।
ॐ सरस्वती मया दृष्ट्वा, वीणा पुस्तक धारणीम् । हंस वाहिनी समायुक्ता मां विद्या दान करोतु में ॐ ।।
ऐं ।
ॐ ऐं नमः |
ॐ ऐं क्लीं सौः |
ॐ ऐं महासरस्वत्यै नमः |
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वद वद वाग्वादिनी स्वाहा ।
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ॐ ऐं ह्रीं श्रीं वाग्देव्यै सरस्वत्यै नमः ।
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ॐ अर्हं मुख कमल वासिनी पापात्म क्षयम् कारी वद वद वाग्वादिनी सरस्वती ऐं ह्रीं नमः स्वाहा ।
।।ॐ वाड्.मयायै नमः ।।
।।ॐ ह्रीं श्रीं शारदायै नमः ।। ।।ॐ ह्रीं ऐं ह्रीं सरस्वत्यै नमः ।। ।।ॐ ह्रीं वेद मातृभ्य: स्वाहा।।
।।ऐं क्लीन कृष्णाय ह्रीं गोविन्दाय श्रीं गोपीजन बल्लभाय स्वाहा सौ :।।
कृष्ण कृष्ण महाकृष्ण सर्वज्ञ त्वं प्रसीद में । रमा रमण विश्वेश ,विद्या माशु प्रयच्छ में ।।
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